श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  7.4.36 
 
 
गुणैरलमसङ्ख्येयैर्माहात्म्यं तस्य सूच्यते ।
वासुदेवे भगवति यस्य नैसर्गिकी रति: ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रह्लाद महाराज के अनगिनत दिव्य गुणों का वर्णन कौन कर सकता है? वासुदेव भगवान श्री कृष्ण (वसुदेव के पुत्र) में उनकी अविचल श्रद्धा एवं अनन्य भक्ति थी। भगवान कृष्ण के प्रति उनकी आसक्ति उनकी पूर्व भक्ति के कारण स्वाभाविक थी। यद्यपि उनके अच्छे गुणों की गणना नहीं की जा सकती है, लेकिन वे महात्मा थे यह सिद्ध होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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