श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  7.4.34 
 
 
यस्मिन्महद्गुणा राजन्गृह्यन्ते कविभिर्मुहु: ।
न तेऽधुना पिधीयन्ते यथा भगवतीश्वरे ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, प्रह्लाद महाराज के सद्गुणों का यश आज भी विद्वान संत तथा वैष्णवजन गाते रहते हैं। जैसे सभी सद्गुण हमेशा भगवान में विद्यमान रहते हैं, वैसे ही वे उनके भक्त प्रह्लाद महाराज में भी सदैव पाए जाते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.