यद्यपि प्रह्लाद महाराज का जन्म असुर वंश में हुआ था, किन्तु वे स्वयं असुर नहीं थे परन्तु भगवान विष्णु के परम भक्त थे। अन्य असुरों की तरह वे कभी भी वैष्णवों से ईर्ष्या नहीं करते थे। कठिन परिस्थिति आने पर वे कभी क्षुब्ध नहीं होते थे और वेदों में वर्णित सकाम कर्मों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी रुचि नहीं लेते थे। निःसंदेह, वे सभी भौतिक वस्तुओं को व्यर्थ मानते थे; इसलिए वे भौतिक इच्छाओं से पूर्णतः रहित थे। वे सदैव अपनी इन्द्रियों तथा प्राणवायु पर संयम रखते थे। स्थिरबुद्धि व संकल्पमय होने के कारण उन्होंने सभी विषय-वासनाओं का दमन कर लिया था।