श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  7.4.22-23 
 
 
तस्यै नमोऽस्तु काष्ठायै यत्रात्मा हरिरीश्वर: ।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते शान्ता: संन्यासिनोऽमला: ॥ २२ ॥
इति ते संयतात्मान: समाहितधियोऽमला: ।
उपतस्थुर्हृषीकेशं विनिद्रा वायुभोजना: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  “हम उस दिशा को सिर झुकाकर प्रणाम करते हैं जहाँ परमात्मा विराजते हैं, जहाँ त्याग के मार्ग पर चलने वाले पवित्र आत्मा वाले महान संत जाते हैं और जहाँ से जाने के बाद वे फिर कभी वापस नहीं आते।” बिना सोए, अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए और केवल अपनी श्वास पर ही जीवित रहकर विभिन्न ग्रहों के अधिपति देवताओं ने इस ध्यान से हृषीकेश की पूजा आरंभ की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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