श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  7.4.19 
 
 
स इत्थं निर्जितककुबेकराड् विषयान् प्रियान् ।
यथोपजोषं भुञ्जानो नातृप्यदजितेन्द्रिय: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  सभी दिशाओं को जीतने की शक्ति प्राप्त करने के बावजूद और सभी प्रकार के प्रिय इंद्रिय सुखों का यथासंभव भोग करने के बाद भी हिरण्यकशिपु असंतुष्ट रहा, क्योंकि वह अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने के बजाय उनका दास बना रहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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