रत्नाकराश्च रत्नौघांस्तत्पत्न्यश्चोहुरूर्मिभि: ।
क्षारसीधुघृतक्षौद्रदधिक्षीरामृतोदका: ॥ १७ ॥
अनुवाद
ब्रह्मांड के सागर अपनी पत्नी समान नदियों और उनकी सहायक नदियों की लहरों से हिरण्यकशिपु के उपयोग के लिए विविध प्रकार के रत्न प्रदान करते थे। ये सागर लवण, इक्षु रस, मदिरा, घी, दूध, दही और मीठे जल के थे।