अकृष्टपच्या तस्यासीत् सप्तद्वीपवती मही ।
तथा कामदुघा गावो नानाश्चर्यपदं नभ: ॥ १६ ॥
अनुवाद
ऐसा प्रतीत होता है कि सात द्वीपों वाली पृथ्वी हिरण्यकशिपु के डर से बिना जोते ही अन्न उगाती थी। इस तरह यह वैकुण्ठ लोक की सुरभि या स्वर्गलोक की कामधेनु गायों की तरह थी। पृथ्वी ने पर्याप्त अनाज दिया, गायों ने भरपूर दूध दिया, और आकाश अद्भुत घटनाओं से सुशोभित था।