श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 4: ब्रह्माण्ड में हिरण्यकशिपु का आतंक  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.4.1 
 
 
श्रीनारद उवाच
एवं वृत: शतधृतिर्हिरण्यकशिपोरथ ।
प्रादात्तत्तपसा प्रीतो वरांस्तस्य सुदुर्लभान् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद मुनि ने कहा: ब्रह्मा जी हिरण्यकशिपु की मुश्किल साधना से अत्यंत प्रसन्न थे। इसलिए, जब उसने उनसे वरदान माँगे, तो उन्होंने निःसंदेह वे दुर्लभ वरदान दे दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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