तस्य त्यक्तस्वभावस्य घृणेर्मायावनौकस: ।
भजन्तं भजमानस्य बालस्येवास्थिरात्मन: ॥ ७ ॥
मच्छूलभिन्नग्रीवस्य भूरिणा रुधिरेण वै ।
असृक्प्रियं तर्पयिष्ये भ्रातरं मे गतव्यथ: ॥ ८ ॥
अनुवाद
भगवान ने असुरों और देवताओं के बीच में अपनी स्वाभाविक समानता की प्रवृत्ति छोड़ दी है। यद्यपि वे सर्वोच्च पुरुष हैं, परंतु अब माया के प्रभाव में आकर, वे अपने भक्तों अर्थात् देवताओं को प्रसन्न करने के लिए वराह का अवतार धारण कर लिया है, जैसे एक बेचैन बच्चा किसी की ओर झुक जाता है। इसलिए मैं अपने त्रिशूल से भगवान विष्णु के सिर को उनके शरीर से अलग कर दूँगा और उनके शरीर से निकले प्रचुर रक्त से अपने भाई हिरण्याक्ष को प्रसन्न करूँगा, जिसे उनके रक्त को चूसना पसंद था। इस प्रकार मैं भी शांत हो जाऊँगा।