श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  7.2.61 
 
 
श्रीनारद उवाच
इति दैत्यपतेर्वाक्यं दितिराकर्ण्य सस्‍नुषा ।
पुत्रशोकं क्षणात्त्यक्त्वा तत्त्वे चित्तमधारयत् ॥ ६१ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री नारद जी ने आगे बताया: हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष की माता दिति ने अपनी पुत्रवधू, हिरण्याक्ष की पत्नी रुषाभानु के साथ हिरण्यकशिपु के उपदेशों को सुना। तब उसने अपने पुत्र की मृत्यु के शोक को भुला दिया और अपने मन और ध्यान को जीवन के सच्चे दर्शन को समझने में लगा दिया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध सात के अंतर्गत दूसरा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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