श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  7.2.58 
 
 
श्रीहिरण्यकशिपुरुवाच
बाल एवं प्रवदति सर्वे विस्मितचेतस: ।
ज्ञातयो मेनिरे सर्वमनित्यमयथोत्थितम् ॥ ५८ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्यकशिपु ने कहा: जब यमराज एक छोटे बालक के रूप में सुयज्ञ के मृत शरीर के इर्द-गिर्द खड़े सभी रिश्तेदारों को उपदेश दे रहे थे, तो सभी लोग उनके दार्शनिक शब्दों को सुनकर आश्चर्यचकित थे। वे समझ गए थे कि हर भौतिक चीज़ नश्वर है, वह हमेशा अस्तित्व में नहीं रह सकती।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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