श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  7.2.57 
 
 
एवं यूयमपश्यन्त्य आत्मापायमबुद्धय: ।
नैनं प्राप्स्यथ शोचन्त्य: पतिं वर्षशतैरपि ॥ ५७ ॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, युवक के रूप में प्रच्छन्न यमराज ने रानियों से कहा: तुम सभी इतनी मूर्ख हो कि तुम विलाप करती रहती हो, फिर भी तुम स्वयं की मृत्यु को नहीं देख पाती हो। ज्ञान की कमी के कारण, तुम यह नहीं जान पाती हो कि यदि तुम सैंकड़ों वर्षों तक भी अपने मृत पति के लिए विलाप करती रहोगी तो भी तुम उसे दोबारा जीवित नहीं कर पाओगी, और इस बीच तुम्हारा जीवन समाप्त हो जाएगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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