श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  7.2.55 
 
 
कथं त्वजातपक्षांस्तान् मातृहीनान् बिभर्म्यहम् ।
मन्दभाग्या: प्रतीक्षन्ते नीडे मे मातरं प्रजा: ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  पक्षी के मातृहीन दुर्भाग्यपूर्ण बच्चे घोंसले में उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह आकर उन्हें खिलाए। वे बहुत छोटे हैं और उनके पंख तक नहीं निकले हैं। मैं उनका भरण-पोषण कैसे कर पाऊँगा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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