श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  7.2.54 
 
 
कामं नयतु मां देव: किमर्धेनात्मनो हि मे ।
दीनेन जीवता दु:खमनेन विधुरायुषा ॥ ५४ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि कठोर भाग्य मेरी अर्धांगिनी, मेरी पत्नी को ले जा रहा है तो फिर मुझे भी क्यों नहीं ले जाता? आधा शरीर ही बचा रहने से और अपनी पत्नी की कमी से व्याकुल हो करके जीने से मुझे क्या हासिल होगा? इस प्रकार क्या प्राप्त करूँगा मैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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