कामं नयतु मां देव: किमर्धेनात्मनो हि मे ।
दीनेन जीवता दु:खमनेन विधुरायुषा ॥ ५४ ॥
अनुवाद
यदि कठोर भाग्य मेरी अर्धांगिनी, मेरी पत्नी को ले जा रहा है तो फिर मुझे भी क्यों नहीं ले जाता? आधा शरीर ही बचा रहने से और अपनी पत्नी की कमी से व्याकुल हो करके जीने से मुझे क्या हासिल होगा? इस प्रकार क्या प्राप्त करूँगा मैं?