श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  7.2.53 
 
 
अहो अकरुणो देव: स्त्रियाकरुणया विभु: ।
कृपणं मामनुशोचन्त्या दीनया किं करिष्यति ॥ ५३ ॥
 
अनुवाद
 
  हाय! विधाता कितना क्रूर है। मेरी पत्नी अकेली होने के कारण ही ऐसी विषम स्थिति में है और मेरे लिए विलाप कर रही है। विधाता को इस असहाय चिड़िया को मारकर क्या फायदा होगा? उसे क्या लाभ होगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.