श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  7.2.52 
 
 
सासज्जत सिचस्तन्‍त्र्यां महिष्य: कालयन्त्रिता ।
कुलिङ्गस्तां तथापन्नां निरीक्ष्य भृशदु:खित: ।
स्‍नेहादकल्प: कृपण: कृपणां पर्यदेवयत् ॥ ५२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे सुयज्ञ की देवियों, नर कुलिंग पक्षी जब अपनी पत्नी को भाग्य की दया पर विपत्ति में पड़ा देखता है, तो वह बहुत दुखी होता है। पति के ममतावश, दुखी पक्षी अपनी पत्नी को मुसीबत से नहीं निकाल पाता और इसलिए, वह उसके लिए विलाप करने लगता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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