श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  7.2.50 
 
 
लुब्धको विपिने कश्चित्पक्षिणां निर्मितोऽन्तक: ।
वितत्य जालं विदधे तत्र तत्र प्रलोभयन् ॥ ५० ॥
 
अनुवाद
 
  एक बहेलिया था, जो पक्षियों को दाना डालकर फुसलाता था और फिर एक जाल बिछाकर उन्हें पकड़ लेता था। जी रहा था मानो पक्षियों के हत्यारे की तरह स्वयं मौत ने उसे नियुक्त किया हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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