श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  7.2.47 
 
 
यावल्लिङ्गान्वितो ह्यात्मा तावत्कर्मनिबन्धनम् ।
ततो विपर्यय: क्लेशो मायायोगोऽनुवर्तते ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  जब तक आत्मा सूक्ष्म शरीर से आवृत रहेगी, जिसमें मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं, तब तक वह अपने कर्मों के फल से बँधी रहेगी। इस आवरण के कारण, आत्मा भौतिक ऊर्जा से जुड़ी रहती है और इसलिए उसे जीवन के बाद जीवन, भौतिक परिस्थितियों और उलटफेरों का सामना करना पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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