श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  7.2.46 
 
 
भूतेन्द्रियमनोलिङ्गान् देहानुच्चावचान् विभु: ।
भजत्युत्सृजति ह्यन्यस्तच्चापि स्वेन तेजसा ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  पाँच भौतिक तत्व, दस इन्द्रियाँ तथा मन मिलकर स्थूल और सूक्ष्म शरीरों के विभिन्न अंगों का निर्माण करते हैं। जीव इन भौतिक शरीरों के सम्पर्क में आता है, जो उच्च या निम्न श्रेणी का हो सकता है। बाद में अपनी शक्ति से इन शरीरों को छोड़ देता है। जीव की विभिन्न प्रकार के शरीर धारण करने की क्षमता उसकी निजी शक्ति है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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