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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु
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श्लोक 35
श्लोक
7.2.35
एवं विलपतीनां वै परिगृह्य मृतं पतिम् ।
अनिच्छतीनां निर्हारमर्कोऽस्तं सन्न्यवर्तत ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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यद्यपि शव जलाने का सही समय हो गया था, किन्तु रानियाँ शव को अपनी गोद में रख कर विलाप करती रहीं, और उसे ले जाने की अनुमति नहीं दी। इसी बीच सूर्य पश्चिम में अस्त हो गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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