श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  7.2.33 
 
 
अहो विधात्राकरुणेन न: प्रभो
भवान् प्रणीतो द‍ृगगोचरां दशाम् ।
उशीनराणामसि वृत्तिद: पुरा
कृतोऽधुना येन शुचां विवर्धन: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, अब आपको क्रूर विधाता ने हमारी दृष्टि से हटा दिया है। पहले आप उशीनर के निवासियों को जीविका प्रदान करते थे जिससे वे सुखी थे, पर अब आपकी दशा उनकी दुख का कारण बन गई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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