श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  7.2.32 
 
 
रुदत्य उच्चैर्दयिताङ्‌घ्रिपङ्कजं
सिञ्चन्त्य अस्रै: कुचकुङ्कुमारुणै: ।
विस्रस्तकेशाभरणा: शुचं नृणां
सृजन्त्य आक्रन्दनया विलेपिरे ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  यह सुनकर रानियों के मुँह से ऊँचे स्वर में चीख निकल पड़ी, और उनके आँसू उनके सीने पर बहने लगे, जहाँ वे कुमकुम की पावडर से रंगे हुए थे, और फिर उनके पति के चरणों में गिर गए। उनके बाल बिखर गए, उनके आभूषण गिर गए, और दूसरों के दिलों से सहानुभूति जगाते हुए, रानियाँ अपने पति की मृत्यु पर शोक प्रकट करने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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