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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु
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श्लोक 23
श्लोक
7.2.23
यथाम्भसा प्रचलता तरवोऽपि चला इव ।
चक्षुषा भ्राम्यमाणेन दृश्यते चलतीव भू: ॥ २३ ॥
अनुवाद
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नदी के किनारे लगे वृक्षों का जल में परावर्तन होकर चलते हुए दिखना जल की गति के कारण होता है। उसी तरह मानसिक असंतुलन की स्थिति में जब आँखें हिलती हैं, तब भी भूमि (स्थल) घूमती हुई दिखाई देती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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