श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  7.2.22 
 
 
नित्य आत्माव्यय: शुद्ध: सर्वग: सर्ववित्पर: ।
धत्तेऽसावात्मनो लिङ्गं मायया विसृजन्गुणान् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्मा अमर है और उसका नाश नहीं हो सकता क्योंकि वह शाश्वत है। भौतिकता से अनासक्त होने के कारण वह भौतिक या आध्यात्मिक जगत में कहीं भी जा सकता है। वह भौतिक शरीर से पूरी तरह सचेत रहते हुए भी उससे सर्वथा अलग है, परंतु अपनी स्वतंत्रता के दुरुपयोग से उसे भौतिक शक्तियों द्वारा निर्मित सूक्ष्म और स्थूल शरीर धारण करने पड़ते हैं और इस प्रकार उसे तथाकथित भौतिक सुख और दुख सहने पड़ते हैं। इसलिए, किसी को भी शरीर से आत्मा के निकलने पर शोक नहीं मनाना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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