श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  7.2.18-19 
 
 
शकुनिं शम्बरं धृष्टिं भूतसन्तापनं वृकम् ।
कालनाभं महानाभं हरिश्मश्रुमथोत्कचम् ॥ १८ ॥
तन्मातरं रुषाभानुं दितिं च जननीं गिरा ।
श्लक्ष्णया देशकालज्ञ इदमाह जनेश्वर ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, हिरण्यकशिपु अति क्रुद्ध था, परंतु महान राजनीतिज्ञ होने के कारण वह परिस्थिति और समय के अनुसार कर्म करना जानता था। इसलिए वह अपने भतीजों को मधुर वचनों से संतुष्ट करने लगा। उनके नाम थे शकुनि, शम्बर, धृष्टि, भूतसन्तापन, वृक, कालनाभ, महानाभ, हरिश्मश्रु और उत्कच। उसने उनकी माता यानी अपनी छोटी बहू रुषाभानु एवं अपनी माता दिति को भी सांत्वना दी। वह उनसे इस प्रकार बोला।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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