श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.2.17 
 
 
हिरण्यकशिपुर्भ्रातु: सम्परेतस्य दु:खित: ।
कृत्वा कटोदकादीनि भ्रातृपुत्रानसान्त्वयत् ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने भाई हिरण्यकश्यप के निधन की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न कर लेने के पश्चात अत्यन्त दुखित होकर हिरण्यकश्यप ने अपने भतीजों को सान्त्वना देने का प्रयत्न किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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