श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.2.16 
 
 
एवं विप्रकृते लोके दैत्येन्द्रानुचरैर्मुहु: ।
दिवं देवा: परित्यज्य भुवि चेरुरलक्षिता: ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार हिरण्यकशिपु के अनुयायियों की बार-बार की अप्राकृतिक घटनाओं के कारण सभी लोग परेशान हो गये। वैदिक संस्कृति की सभी गतिविधियाँ बन्द हो गईं। यज्ञों का फल न मिलने से देवतागण भी विचलित हो गये। उन्होंने स्वर्गलोक के अपने आवास त्याग दिये और असुरों से छिपकर पृथ्वी पर विनाश का अवलोकन करने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.