श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 2: असुरराज हिरण्यकशिपु  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.2.15 
 
 
केचित्खनित्रैर्बिभिदु: सेतुप्राकारगोपुरान् ।
आजीव्यांश्चिच्छिदुर्वृक्षान् केचित्परशुपाणय: ।
प्रादहन् शरणान्येके प्रजानां ज्वलितोल्मुकै: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  कुछ राक्षसों ने फावड़े लेकर पुलों, किलेबंद दीवारों और शहरों के द्वारों (गोपुरों) को तोड़ दिया। कुछ राक्षसों ने कुल्हाड़ी उठाई और आम, कटहल और अन्य भोजन के प्रमुख स्रोत वाले पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। कुछ राक्षसों ने जलते हुए मशाले लीं और नागरिकों के निवास स्थानों में आग लगा दी।
 
 
 
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