श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 80
 
 
श्लोक  7.15.80 
 
 
इति दाक्षायणीनां ते पृथग्वंशा: प्रकीर्तिता: ।
देवासुरमनुष्याद्या लोका यत्र चराचरा: ॥ ८० ॥
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नम: कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  इस ब्रह्मांड में सभी लोकों के सभी चेतन और जड़ प्राणी, जिनमें देवता, असुर और मनुष्य शामिल हैं, महाराज दक्ष की पुत्रियों से उत्पन्न हुए। इस तरह मैंने उन सभी का और उनके विभिन्न वंशों का वर्णन कर दिया है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध सात के अंतर्गत पंद्रहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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