स वा अयं ब्रह्म महद्विमृग्य
कैवल्यनिर्वाणसुखानुभूति: ।
प्रिय: सुहृद् व: खलु मातुलेय
आत्मार्हणीयो विधिकृद्गुरुश्च ॥ ७६ ॥
अनुवाद
यह कितना आश्चर्यजनक है कि परब्रह्म कृष्ण, जिन्हें महान ऋषि मुक्ति और परमानंद प्राप्ति के लिए खोजते हैं, तुम्हारे सर्वश्रेष्ठ शुभचिंतक, मित्र, चचेरे भाई, आत्मा, पूजनीय मार्गदर्शक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में कार्य कर रहे हैं।