श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 75
 
 
श्लोक  7.15.75 
 
 
यूयं नृलोके बत भूरिभागा
लोकं पुनाना मुनयोऽभियन्ति ।
येषां गृहानावसतीति साक्षाद्
गूढं परं ब्रह्म मनुष्यलिङ्गम् ॥ ७५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज युधिष्ठिर, तुम पाण्डव इस संसार में इस प्रकार भाग्यशाली हो कि स्वयं ब्रह्माण्ड के समस्त लोकों को पवित्र करने वाले अनेकानेक सन्तजन तुम्हारे घर में सामान्य दर्शक के रूप में चले आते हैं। दूसरी ओर, भगवान श्री कृष्ण स्वयं भी तुम्हारे घर में गोपनीय ढंग से रहते हैं और तुमसे भाई के समान व्यवहार करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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