एकदा देवसत्रे तु गन्धर्वाप्सरसां गणा: ।
उपहूता विश्वसृग्भिर्हरिगाथोपगायने ॥ ७१ ॥
अनुवाद
एक बार देवताओं के सभा में परमेश्वर की महिमा के कीर्तन के लिए एक संकीर्तन का आयोजन किया गया था जिसमें प्रजापतियों द्वारा गान्धर्वों और अप्सराओं को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था।