श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 70
 
 
श्लोक  7.15.70 
 
 
रूपपेशलमाधुर्यसौगन्ध्यप्रियदर्शन: ।
स्त्रीणां प्रियतमो नित्यं मत्त: स्वपुरलम्पट: ॥ ७० ॥
 
अनुवाद
 
  मेरा चेहरा सुंदर था और मेरा शरीर आकर्षक व अनुपम था। फूलों की मालाओं और चंदन के लेप से सजा होने के कारण अपनी नगरी की स्त्रियों को मैं बहुत ही मोहक लगता था। इस प्रकार मैं मोहग्रस्त था और काम वासनाओं से हमेशा भरा रहता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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