श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 68
 
 
श्लोक  7.15.68 
 
 
यथा हि यूयं नृपदेव दुस्त्यजा-
दापद्गणादुत्तरतात्मन: प्रभो: ।
यत्पादपङ्केरुहसेवया भवा-
नहारषीन्निर्जितदिग्गज: क्रतून् ॥ ६८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा युधिष्ठिर, तुम सभी पाण्डवों ने परमेश्वर की सेवा के कारण अनेक राजाओं तथा देवताओं द्वारा उत्पन्न बड़े से बड़े संकटों पर विजय प्राप्त कर ली। तुमने कृष्ण के चरणकमलों की सेवा करके हाथियों के समान बड़े-बड़े शत्रुओं को जीत लिया है और अपने यज्ञ के लिए सामग्री एकत्र की है। भगवत्कृपा से तुम भव-बन्धन से छूट जाओगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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