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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश
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श्लोक 67
श्लोक
7.15.67
एतैरन्यैश्च वेदोक्तैर्वर्तमान: स्वकर्मभि: ।
गृहेऽप्यस्य गतिं यायाद् राजंस्तद्भक्तिभाङ्नर: ॥ ६७ ॥
अनुवाद
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हे राजा, मनुष्य को अपने वृत्तिपरक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए इन निर्देशों और वैदिक साहित्य में दिए गए अन्य निर्देशों का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से वह भगवान कृष्ण का भक्त बना रहेगा और इस तरह घर में रहते हुए भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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