श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  7.15.66 
 
 
यद् यस्य वानिषिद्धं स्याद्येन यत्र यतो नृप ।
स तेनेहेत कार्याणि नरो नान्यैरनापदि ॥ ६६ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा युधिष्ठिर, जब कोई संकट न हो, अर्थात् सामान्य परिस्थितियाँ हों, तो मनुष्य को अपने जीवन-स्तर के अनुसार तय किए गए कार्यों को उन वस्तुओं, प्रयासों, प्रक्रियाओं और निवास स्थानों के द्वारा करना चाहिए जो उसके लिए निषिद्ध न हों। उसे अन्य तरीकों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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