धातवोऽवयवित्वाच्च तन्मात्रावयवैर्विना ।
न स्युर्ह्यसत्यवयविन्यसन्नवयवोऽन्तत: ॥ ६० ॥
अनुवाद
शरीर पाँच तत्त्वों से बना है, इसलिए यह सूक्ष्म इंद्रिय-विषयों के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकता। चूँकि शरीर झूठा है, इसलिए इंद्रिय-विषय भी स्वाभाविक रूप से झूठे या क्षणिक हैं।