श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  7.15.59 
 
 
क्षित्यादीनामिहार्थानां छाया न कतमापि हि ।
न सङ्घातो विकारोऽपि न पृथङ्‌‌नान्वितो मृषा ॥ ५९ ॥
 
अनुवाद
 
  इस संसार में पाँच तत्व हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। लेकिन शरीर न तो उनका प्रतिबिंब है न उनका संयोजन या उनका रूपांतरण है। क्योंकि शरीर और उसके अवयव न तो अलग-अलग हैं और न ही मिश्रित हैं, इसलिए ऐसे सभी सिद्धांत निराधार हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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