क्षित्यादीनामिहार्थानां छाया न कतमापि हि ।
न सङ्घातो विकारोऽपि न पृथङ्नान्वितो मृषा ॥ ५९ ॥
अनुवाद
इस संसार में पाँच तत्व हैं - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। लेकिन शरीर न तो उनका प्रतिबिंब है न उनका संयोजन या उनका रूपांतरण है। क्योंकि शरीर और उसके अवयव न तो अलग-अलग हैं और न ही मिश्रित हैं, इसलिए ऐसे सभी सिद्धांत निराधार हैं।