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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश
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श्लोक 56
श्लोक
7.15.56
य एते पितृदेवानामयने वेदनिर्मिते ।
शास्त्रेण चक्षुषा वेद जनस्थोऽपि न मुह्यति ॥ ५६ ॥
अनुवाद
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इस भौतिक शरीर में रहते हुए भी उस व्यक्ति को मोह नहीं होता जिसको पितृ-यान और देव-यान मार्गों की पूर्ण जानकारी होती है और जो वैदिक ज्ञान की दृष्टि से अपनी आँखें खोले रखता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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