श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  7.15.55 
 
 
देवयानमिदं प्राहुर्भूत्वा भूत्वानुपूर्वश: ।
आत्मयाज्युपशान्तात्मा ह्यात्मस्थो न निवर्तते ॥ ५५ ॥
 
अनुवाद
 
  आत्म-साक्षात्कार के लिए उन्नति की यह क्रमिक प्रक्रिया उन लोगों के लिए है जो सचमुच परम सत्य से अवगत हैं। इस देवयान नामक मार्ग पर बार-बार जन्म लेने से व्यक्ति क्रमिक अवस्थाओं को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति आत्मा में स्थित है और भौतिक इच्छाओं से पूर्णतः मुक्त है, उसे बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से गुज़रने की आवश्यकता नहीं होती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.