देशे काले च सम्प्राप्ते मुन्यन्नं हरिदैवतम् ।
श्रद्धया विधिवत्पात्रे न्यस्तं कामधुगक्षयम् ॥ ५ ॥
अनुवाद
जब उपयुक्त शुभ अवसर और स्थान प्राप्त हो तो मनुष्य को चाहिए कि वह अत्यन्त प्यार से भगवान् की मूर्ति को घी में बना भोजन चढ़ाए और फिर उस प्रसाद को उपयुक्त व्यक्ति यानी वैष्णव या ब्राह्मण को दे। इससे अक्षय समृद्धि प्राप्त होगी।