प्रवृत्तं च निवृत्तं च द्विविधं कर्म वैदिकम् ।
आवर्तते प्रवृत्तेन निवृत्तेनाश्नुतेऽमृतम् ॥ ४७ ॥
अनुवाद
वेदों के अनुसार, दो प्रकार के कार्यकलाप हैं - प्रवृत्ति और निवृत्ति। प्रवृत्ति कार्यकलाप भौतिक जीवन की निम्नतर अवस्था से उच्चतर अवस्था तक उठना है, जबकि निवृत्ति का अर्थ है भौतिक इच्छाओं का अंत। प्रवृत्ति कार्यकलापों से मनुष्य भौतिक बंधन में कष्ट उठाता है, लेकिन निवृत्ति कार्यकलापों से वह शुद्ध हो जाता है और नित्य आनंदमय जीवन को भोगने के योग्य बनता है।