रागो द्वेषश्च लोभश्च शोकमोहौ भयं मद: ।
मानोऽवमानोऽसूया च माया हिंसा च मत्सर: ॥ ४३ ॥
रज: प्रमाद: क्षुन्निद्रा शत्रवस्त्वेवमादय: ।
रजस्तम:प्रकृतय: सत्त्वप्रकृतय: क्वचित् ॥ ४४ ॥ H
अनुवाद
बद्ध अवस्था में व्यक्ति की जीवन सम्बन्धी अवधारणाएँ कभी-कभी काम और अज्ञानता (रजोगुण और तमोगुण) के कारण दूषित हो जाती हैं। यह आसक्ति, शत्रुता, लालच, शोक, भ्रम, भय, घमंड, झूठी प्रतिष्ठा, अपमान, दोष निकालना, धोखा, ईर्ष्या, असहिष्णुता, काम, मोह, भूख और नींद के रूप में प्रकट होता है। ये सभी शत्रु हैं। कभी-कभी सतोगुण के कारण भी व्यक्ति की अवधारणाएँ दूषित हो जाती हैं।