आहु: शरीरं रथमिन्द्रियाणि
हयानभीषून्मन इन्द्रियेशम् ।
वर्त्मानि मात्रा धिषणां च सूतं
सत्त्वं बृहद् बन्धुरमीशसृष्टम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद
परमेश्वर के निर्देश से निर्मित शरीर की तुलना ज्ञान संपन्न अध्यात्मवादी रथ से करते हैं; इंद्रियां घोड़ों के समान हैं; इंद्रियों का स्वामी मन लगाम के समान है; इंद्रियों के विषय गंतव्य हैं; बुद्धि सारथी है और पूरे शरीर में व्याप्त चेतना ही इस भौतिक दुनिया में बंधन का कारण है।