श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  7.15.40 
 
 
आत्मानं चेद्विजानीयात्परं ज्ञानधुताशय: ।
किमिच्छन्कस्य वा हेतोर्देहं पुष्णाति लम्पट: ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य का शरीर आत्मा और परमात्मा को समझने के लिए अभिप्रेत है, और ये दोनों आध्यात्मिक तल पर स्थित हैं। यदि उच्च ज्ञान से शुद्ध हुए व्यक्ति द्वारा इन्हें समझा जा सकता है, तो फिर एक मूर्ख और लालची व्यक्ति किसके लिए और किस कारण से इस शरीर को इंद्रिय-सुख के लिए पोषित करता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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