श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  7.15.36 
 
 
य: प्रव्रज्य गृहात्पूर्वं त्रिवर्गावपनात्पुन: ।
यदि सेवेत तान्भिक्षु: स वै वान्ताश्यपत्रप: ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  जो मनुष्य संन्यासी जीवन स्वीकार करता है, वह धर्म, अर्थ और काम इन तीन भौतिकतावादी क्रिया-कलापों के सिद्धांतों को त्याग देता है, जिनमें मनुष्य गृहस्थ जीवन में लिप्त रहता है। जो व्यक्ति पहले संन्यास स्वीकार करता है, लेकिन बाद में ऐसी भौतिकतावादी क्रियाकलापों में लौट आता है, उसे वान्ताशी कहा जाता है, जिसका अर्थ है अपनी वमन को खाने वाला। निःसंदेह, वह बेशर्म व्यक्ति है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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