श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  7.15.35 
 
 
कामादिभिरनाविद्धं प्रशान्ताखिलवृत्ति यत् ।
चित्तं ब्रह्मसुखस्पृष्टं नैवोत्तिष्ठेत कर्हिचित् ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब चेतना भौतिक लिप्साओं से अछूती रहती है, फिर वह सभी कार्यों में शांत और सुकून में रहती है क्योंकि मनुष्य नित्य आनंदमय जीवन सिद्घ कर लेता है। उस स्तर पर स्थित होने के बाद वह दोबारा भौतिकता की ओर लौटता ही नहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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