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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान
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अध्याय 15: सुसंस्कृत मनुष्यों के लिए उपदेश
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श्लोक 34
श्लोक
7.15.34
एवमभ्यस्यतश्चित्तं कालेनाल्पीयसा यते: ।
अनिशं तस्य निर्वाणं यात्यनिन्धनवह्निवत् ॥ ३४ ॥
अनुवाद
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नियमित रूप से ऐसे ही साधना करने पर कुछ समय में योगी के हृदय में स्थिरता आ जाती है और उसे कोई चंचलता नहीं रहती, जैसे लपट और धुआँरहित अग्नि।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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