नाक की नोक पर लगातार दृष्टि लगाकर विद्वान योगी श्वास लेने का अभ्यास करते हैं, जिसे पूरक, कुम्भक और रेचक के नाम से जाना जाता है - अर्थात् श्वास अंदर लेना, बाहर निकालना और फिर दोनों को रोकना। इस प्रकार योगी अपने मन को भौतिक मोह से रोकता है और सभी मानसिक इच्छाओं का त्याग कर देता है। जैसे ही मन कामुक इच्छाओं से हारकर इंद्रियसुख की भावनाओं की ओर बढ़ता है, योगी को उसे तुरंत वापस लाकर अपने हृदय में बाँध लेना चाहिए।