यश्चित्तविजये यत्त: स्यान्नि:सङ्गोऽपरिग्रह: ।
एको विविक्तशरणो भिक्षुर्भैक्ष्यमिताशन: ॥ ३० ॥
अनुवाद
जो मन पर विजय प्राप्त करना चाहे उसे अपने परिवार का साथ छोड़कर, दूषित संगति से मुक्त एकांत स्थान में रहना चाहिए। अपने शरीर के लिए उसे उतना ही मांगना चाहिए जितने से जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाये।